Friday, 4 October 2013

सुन्नी गली की शहजादी

          सुन्नी  गली की शहजादी  
मै अक्सर उस सुन्नी गली से गुजरता था !वो गली दोनों तरफ से खुलती थी !
मगर फिर भी उस गली से गुजरता हुआ किसी को मैंने कभी नही देखा था !
बस गली में एक ही महल नुमा घर था !एक बड़े से तबेले की पीछे की दीवारे 
उस घर के सामने दिखाई देती थी !उस घर के साथ लगती हुई गुरूद्वारे की 
बड़ी दीवार इन्ही तीनो के बीच से आर-पार जाता रास्ता 
                   एक दिन मैंने उस महलनुमा घर की चोखट पर एक हसीन 
लडकी देखी जो इंतहा की खुबसुरत थी जैसे आसमान से कोई परी उतर 
आई हो उस सुंदर और सुन्नी गली में उस गली से मै महीनों से गुजरता था !
मगर इस के पहले उस शहजादी को नही देखा था !आँखे आश्चर्य से भर गई !
मैंने सोचा यह क्या कोई सपना तो नही यहा इतनी हसीन लडकी मुझे भरोसा 
नही हो रहा था !मै अच्भित सा हो वहा से गुजर गया !
                मगर घर आया तो ना वो दिन काटने से कटा और ना ही वो रात 
मै दूसरे दिन फिर उस गली से गुजरा उस महल के दरवाजे पर कुछ सुगबुहाट 
सी महसूस हुई !मै ठिठक के वही खड़ा हो गया देखा वही शहजादी बाहर की 
और आ रही थी !मुझ से रहा ना गया पूछ लिया आप यही रहती है नई आई 
है पहले कभी देखा नही एक साथ मै यह सब बोल गया !
              शहजादी बड़े अदब से बोली जी यह मेरा ही घर है कुछ सालो से मै 
बाहर विश्वविद्यालय में पढाई कर रही थी ! पढाई पूरी करके कुछ दिन पहली 
ही लोटी हूँ !
           अक्सर बड़े महलो में कम ही लोग रहते है उससे नजदिकीया बड़ने लगी 
हम मिलने लगे प्यार के सिलसले शुरू हो गये !शहजादी ने बताया उस का एक 
ही बड़ा भाई है और उस ने किसी दुसरे देश में घर बसा लिया है  बहुत बड़ा बिजनस 
है जमीन है जिसे उस के पापा देखते है !घर में शहजादी उस की माँ और एक 
नोकरानी !
           हमारा प्यार दिनों-दिन बड़ने लगा कब महीने गुजरे पता ही नही चला !
एक दिन शहजादी ने बताया की मै बाहर जा रही हूँ मैंने पूछा कब लोटो गी !
शहजादी बोली पता नही लोटू या ना लोटू शायद मेरे पापा मेरी शादी करने जा 
रहे है इस से ज्यादा मुझे भी मेरी शादी के बारे कुछ पता नही !
              वेसा ही हुआ उस की शादी हो गई और शहजादी कभी नही लोटी !