- आखिर काला धन काला ही कैसे रह गया
- ज्यादा नहीं लिखू गा बस कुछ बाते काला धन वालो के हथकंडे हजारो थे
- पहला नोट बंदी के दौरान जो चार हजार बदलने की सुविधा थी कुछ कम्पनिया
- वालो ले लाखो करोड़ो रूपये बदलवा लिये तो काला धन वही अलमारियों में रहा
- दूसरा पट्रोल पन्पुम को जो 500 - 1000 रूपये लेने की छूट रही उन्होंने मालिकों या
- कर्मचारियों ने पैसे बदलने में सहाईता की तो यह भी काला उन्ही अलमारियों में रहा
- ऐसे बहुत से हथकंडे यह सब मेरी सच्ची और झूटी सोच पर आधारित है इसी लिये
- मैं ज्यादा हथकंडो बारे नहीं लिख रहा
- राजीव अर्पण फ़िरोज़पुर शहर पंजाब भारत
Wednesday, 15 November 2017
आखिर काला धन काला ही कैसे रह गया
Thursday, 27 April 2017
जब किसी गीत ग़ज़ल रचना होती है तब मेरे अंदर सगीत समोहन ना जाने क्या -क्या
जब किसी गीत ग़ज़ल रचना होती है तब मेरे अंदर सगीत समोहन ना जाने क्या -क्या
जब कभी मुझे गीत या ग़ज़ल उतरती है यहां उतरती इस लिये लिख रहा हूँ मै कोई
पेशे के लिये या किसी ने मुझे कोई मजमून दिया हो उस पर कुछ किताबे या उस विषय
से सबंधित जानकारी हांसिल कर के बहुत मेहनत से तो लिखता नहीं की मुझे मेरा मेहनताना
मिले इतने सालो से लिखते -लिखते बैसे तो यह सब बहुत आसानी से कर सकता हूँ मगर
किया कम ही है हा कुछ दोस्तों के लिये लिखना पड़ा जिन्हे लिखना लाजमी सा था
उन से सब पूछा हा आप को कहा किस बारे लिखना है उनसे एक दो दिन का
समय लिया ओर जब मुझे मसूस हुआ की अब लिख सकता हूँ तो एक बार मे ही उन्हें
लिख कर दे दिया ओर कहा भाई इससे अपनी मर्जी से ठीक ओर अच्छा कर लो
कुछ दोस्तों ने मुझे बताया दोस्त हमने बहुत कोशिश की रातो भर दिन भर तुम्हारे लिखे
को अच्छा करने की मगर वो तो ओर खराब होता गया किरपा इस मे हमारे कहने कुछ
ओर जोड़ दीजिए जो रह गया है या कुछ निकाल दीजिये तो दोस्तों के लिये यह सब करना ही
पड़ा
मगर मै बात कर रहा था जब कभी मेरे पे कोई गीत ग़ज़ल उतरती है तो एक अजीब सा नशा
होने लगता है जो मुझे लिखने के लिये बिब्श कर देता है या सम्मोहित कर देता है मै लिखने
लगता हूँ तब मेरे गीत ग़ज़ल मैं सरगम संगीत एक मदमस्त खशबू ना जाने क्या क्या होता है
मेरे लिये तो अलग ही जहाँन होता है ओर उन पलो मे पल बहुत बड़े हो मेरे लिये तो वो रात दिन
पलो मे ही गुजरती है
राजीव अर्पण फ़िरोज़पुर शहर पंजाब भारत
Thursday, 2 March 2017
मेरी लेखनी मैं ही सभी कदारो का रोल निभाता हूँ
मेरी लेखनी मैं ही सभी कदारो का रोल निभाता हूँ
मैने बहुत छोटी आयु में लिखना शुरू कर दिया था लगभग 14 -15 साल का था
ना समझ पर तब भी मुझे लिखने की आवंद आती थी मैं बहुत सी टूटी फूटी काव्य मे
लाइने लिखता था मगर उन सब मे कुछ लाइने ऐसी लिख जाता था जो बहुत मझे
विचारक लेखक की उन को सुन कर बड़े से बड़े लेखक हैरान हो जाते थे
मैं लिखता रहा और कुछ साफ सुथरा लिखने लगा तब मेरे बहुत से लेखक
दोस्तों ने कहा भाई आप लिखते जाते हो कभी महान लेखको को पड़ भी लिया करो
तब मेने पड़ना शुरू किया किसी महान लेखक की किताब नही छोड़ी जो जो मिलता गया
बस फिर पड़ता ही चला गया सालो साल मेने दिन रात हर छोटे बड़े लिखक विचारक
दार्शनिक और धर्म समाजिक सभी प्रकार की किताबे पड़ दी जो जो हिंदी या पंजाबी
मैं ट्रांसलेट हुई थी
मेरे अपनी लेखनी वैसी ही रखी मैं अपनी हर लेखनी मे हर पात्र लगभग खुद को
ही बनाता दूसरे को पात्र बनाने का मेरा हक भी कहा था बस मैं लिखता ही चला गया बहुत
सी पाडुलिप्या सालो से पड़ी -पड़ी सड़ गल गई बहुत सी छप भी गई और समय के साथ
लुप्त भी हो गई
राजीव अर्पण
Wednesday, 8 February 2017
मेरे देश को चाहिये कम आबादी ताकि देश सभी को सब सुविधाये दे
मेरे देश को चाहिये कम आबादी ताकि देश सभी को सब सुविधाये दे
हाँ मेरे देश को चाहिए कम आबादी ता को सभी नागरिको को देश सभी सुविधाये
देने में सामर्थ हो सके
राजीव अर्पण फ़िरोज़पुर शहर
पंजाब भारत
मेरे देश को चाहिए ज्यादा जमीन समुंदर उच्चतम तकनीक के लिये नोकरिया बस
मेरे देश को चाहिए ज्यादा जमीन समुंदर उच्चतम तकनीक के लिये नोकरिया बस
मेरे देश को चाहिए ज्यादा जमीन और ज्यादा समुंदर उच्चतम तकनीक के लिये
नोकरिया और वेतन बाकी मेरे देश के नागरिक स्वयं से कर ले गे सब कुछ स्वयं से हो
जाये गया
राजीव अर्पण फिरोजपुर शहर
पंजाब भारत
Friday, 27 January 2017
इतने विचार दर्शन मेरे दिल दिमाग मे क्यों
इतने विचार दर्शन मेरे दिल दिमाग मे क्यों
ना मैं कोई स्थापिक लेखक ,विचारक या नेता हूँ ना ही कुछ बनने की चाहत है
ना ही कभी मैने विचारक या लेखक बनने के लिये बहुत मेहनत की है
हाँ जवानी मे कुछ लिखने या कुछ बनने के ख्वाव जरूर देखे होंगे
अब तो इतने विचार मेरे दिलो -दिमाग पर छा जाते है की मैं लिखने को मजबूर
हो जाता हूँ
सीधा लेपटॉप पे हूँ पता नही क्या लिखने जा रहा हूँ कोई तैयार नही
किया हुआ
जो मेरे देश दुनिया मे हो रहा है जिन -जिन विचारो दर्शन की देश दुनिया
मे आज कल दुहाई दी जा रही है उनका ही असर मेरे दिल दिमाग मे होना सोभाभिक
ही है
बहुत सारे दार्शनिको विचारको बहुत गभीरता से पड़ा है उस पे अपना विचार
किया है
बहुत सारे विचारको दार्शनिको को देख और सुन रहा हूँ बहुत से देशो की व्यवस्था
कारिया प्रणाली वा भौतिक वा आर्थिक स्थितयों के बारे मे जानता हूँ
तो यह सोभाविक है उनसब को दिमाग मे होते हुये मेरे दिमाग मे भी कुछ विचार
दर्शन आये गे ही वो सब जब हो जाता है तो मे लिखने को मजबूर हो जाता हूँ
बहुत बार मैं लिखता ही नही खुद को समझा बुझा लेता हूँ मेरे लिखने से क्या होने
वाला है मैं हूँ कोन एक छोटा सा सहिमा सा टुटा फूटा सा कवि लेखक या वो भी नही
मगर फिर भी देखता कैसे कैसे लोग कैसे कैसे विचारो से देश दुनिया को चला रहे
सोचता हूँ ऐसे मे इन सब का इंजाम क्या होने वाला है
और मेरी इतनी उम्र मे क्या क्या इंजाम निकले है उन सब के आधार पर आगे क्या
होगा इस सब का पूरा पूरा नही तो कुछ इंदाजा तो लग ही रहा है
क्या सब जो यह कह रहे है समान अधिकार लोकतंत्र संपूर्ण आजादी यह सब कहने
मे ही है या सच मे है
मेरी समझ मे यह सब कहने मे है सच मे नही
मे एक एक बात पर बहुत विस्तार से लिख सकता हूँ मगर सुनता ही कोन है मे यह जालिम
जमाने मे इतने प्रभाव शाली वा बाहुबली धनाड़ीया लोगो मे मेरी औकात ही क्या है जो मैं कुछ
कह सकू
बस अर्पण ठीक है यह आधा अधूरा लेख
तेरे भाग्य जो तूने स्वयं लिख रखा है दर्दीले गीत लिखना और दर्द हांड़ना अपने साथ
अपने दर्शन और विचारो को लपेट के मर जाना
राजीव अर्पण फ़िरोज़पुर शहर पंजाब भारत
Subscribe to:
Posts (Atom)