Thursday, 2 March 2017

मेरी लेखनी मैं ही सभी कदारो का रोल निभाता हूँ

  मेरी लेखनी मैं ही सभी कदारो का रोल निभाता हूँ 
      मैने बहुत छोटी आयु में लिखना शुरू कर दिया था लगभग 14 -15 साल का था 
ना समझ पर तब भी मुझे लिखने की आवंद आती थी मैं बहुत सी टूटी फूटी काव्य मे 
लाइने लिखता था मगर उन सब मे कुछ लाइने ऐसी लिख जाता था जो बहुत मझे 
विचारक लेखक की उन को सुन कर बड़े से बड़े लेखक हैरान हो जाते थे 
                 मैं लिखता रहा और कुछ साफ सुथरा लिखने लगा तब मेरे बहुत से लेखक 
दोस्तों ने कहा भाई आप लिखते जाते हो कभी महान लेखको को पड़ भी लिया करो 
तब मेने पड़ना शुरू किया किसी महान लेखक की किताब नही छोड़ी जो जो मिलता गया 
बस फिर पड़ता ही चला गया सालो साल मेने दिन रात हर छोटे बड़े लिखक विचारक 
दार्शनिक और धर्म समाजिक सभी प्रकार की किताबे पड़ दी जो जो हिंदी या पंजाबी 
मैं ट्रांसलेट हुई थी 
             मेरे अपनी लेखनी वैसी ही रखी मैं अपनी हर लेखनी मे हर पात्र लगभग खुद को 
ही बनाता दूसरे को पात्र बनाने का मेरा हक भी कहा था बस मैं लिखता ही चला गया बहुत 
सी पाडुलिप्या सालो से पड़ी -पड़ी सड़ गल गई बहुत सी छप भी गई और समय के साथ 
लुप्त भी हो गई 
       राजीव अर्पण