Thursday, 8 December 2016

मैने वो सामने वालो की स्वीटी नाम की कुतिया से क्या लेना था

     
        मैने वो सामने वालो की स्वीटी नाम की कुतिया से क्या लेना था 
मैं मुश्किल से दो साल का था मुझे याद है यह सीन जब रात १२ बजे 
मैं रोने लगा और मैं बहुत ज्यादा जीद करने लगा की मैंने सामने घर 
वालो की कुतिया स्वीटी देखनी है मुझे इतना भी याद  है कि उसने 
दो-चार दिन हुये थे उसने पिलो को जन्म दिया था 
          मेरी जीद के आगे घर वालो को झुकना पड़ा और मेरी दादी 
ने रात को उनका दरवाजा खुलवाया और मुझे स्वीटी के दर्शन करवाये 
मुझे वो जगह स्वीटी की शक्ल अच्छी तरह याद है  
          मगर आज तक मुझे यह नही समझ मे आया मैं उसे देखना क्यू 
चाहता था  
       साथ मे एक और बचपन की याद जीद कर के रोने लगता था 
और रोते -रोते भूल जाता था मैं रो किस लिये रहा हूँ   
                             राजीव अर्पण  फ़िरोज़पुर शहर पंजाब 
                                     भारत 

फिर भी हम क्यू जीये जाते है

  1. फिर भी हम क्यू जीये जाते है                    
  2.     हिन्दू मान्त्य के अनुसार हम मर कर नया जन्म लेते है !
  3. अगर यह सत्य है तो हम बुढे हों जाने पर जब हमारे पास
  4. शरीरक तोर पर ना आंत ना दांत कुछ भी नही रहता है 
  5. कुछ कर भी नही सकते चल नही सकते बैठ नही सकते 
  6. इस सब के विपरीत बहुत सारी बीमारियों तथा कष्टो से 
  7. घीर जाते है बहुत मुश्किल से हम जीते है 
  8.          जब हमे पता है हमारा नया जन्म होगा हम दोबारा 
  9. से जन्म लेंगे फिर से जीना शुरू होगा नया होगा इस से 
  10. बेहतर होगा तो फिर क्यू हम इसी जीवन से चिपके रहते 
  11. है और जीने की तमन्ना रखते है हम नये मे जाने से क्यू 
  12. डरते है बस हम जीये जाते है 
  13.        राजीव अर्पण  

Wednesday, 21 September 2016

KUCHH BATE ANKHI: मृग तृष्णा

KUCHH BATE ANKHI: मृग तृष्णा:              मृग तृष्णा  मृग तृष्णा सबने  सुना है ,सुना है ना यह क्या करती  है !मैंने देखा है  आने वाले पलों के लिये तो यह ख्वाब बना...

मृग तृष्णा

   
         मृग तृष्णा 
मृग तृष्णा सबने  सुना है ,सुना है ना यह क्या करती  है !मैंने देखा है 
आने वाले पलों के लिये तो यह ख्वाब बनाती ही है इंसान को सताती 
ही है 
    अफ़सोस तो इस बात का है की यह गुजरे हुये अच्छे से अच्छे पलों 
को भी नही छोड़ती उन मे भी यह तृष्णा बनी रहती है की जो हुआ वो 
थोड़ा सा ज्यादा होना चाहिये था !जब की जो हो गया उस मे कोई बदलाव 
नही हो सकता फिर भी तृष्णा ना जाने क्यों उलझाये रखती है 
        मेरा घर थोड़ा सा ऐसा देश ऐसा होता दोस्त ऐसे होते बाबा यह कही 
नही छोड़ती मुझे क्या इस ने बडो -बड़ो को मुर्ख बनाया क्या आप को नही बनाती 


            राजीव अर्पण फ़िरोज़पुर शहर पंजाब भारत 

Tuesday, 20 September 2016

अब तो लिखते हुये डर लगता है

                अब तो लिखते हुये डर लगता है 
मेरे देश मैं सुना है ऐसे हालात है की लिखते से पहले किसी वकील की सलाह 
ले लो 
       जो मैंने लिखा है ठीक है कोई केस तो नही बनता  
        परन्तु कहा जाता फिरू वकील के पास मैंने तो सीधा लैपटॉप पर ही लिखा है  
ओह बस करू कही इस पर ही ना केस बन जाये