पनेसर साहिब की कविताये
मेरे कुछ दोस्त है जिन्होंने दो-चार कवितायों से ही जीवन बिता लिया
यानि जीवन में दो -चार कविताये लिखी और वो सफल कवि रहे !
मेरी तरह नही कविता लिखी ना मांजी ना सुधारी बस लिखते ही
गये !दो-चार कविताये जीवन में लिखने से बार-बार पड़ने और सुनाने
से वो सुधर ही जाती है !उन में निखार आ ही जाता है !
उस पर अगर विषय बहुत चर्चित हो धार्मिक हो लोगो की
स्वेदना से जुड़ा हो तथा उस विषय पर बहुत सारे लोगो ने पहले से ही
लिखा हो तो यकीनन आप कवि हो गये !
जपुजी साहिब तथा सुख-मनी साहिब दोनों अलोकिक कृतिया
अदभूत है अपने आप में संपूर्ण है !यह स्वय गुरु साहिब के मुख से कही
गई है जिन की प्रशंशा में कुछ कहना चाँद को दिया दिखाने के समान है
मगर फिर भी उनकी प्रशंशा में कविता लिखी और उनकी प्रशंशा में
लिखा वो अपने आप में इतनी प्रशंशनीय है की प्रशंशा की जरूरत ही
नही फिर भीपनेसर साहिब ने ने वो दोनों पे कविताये लिख ली !
जहा कभी हमारी मींटिग होती वही कविताये बोल देते और
धार्मिक सिख समागमो में भी ,तो वहा वाह -वाह मिलनी तो लाजमी थी !
ऐसे ही मेरे कुछ और दोस्त ने ऐसे बिषयो पर कविता लिखी जिन पर
पहले से कविता लिखी जा चुकी थी जेसे कि मगती,विधवा ,माँ बोली या
मातर भाषा अदि वो दो-चार कविता लिख क्र ही सफल कवि कहलाये !
राजीव अर्पण